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व्याख्यान-इक्कीसवाँ
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- पूरे शहर में रानी की चिल्लाहट और दुष्ट को कारागृह में बन्द कर देने की वात वायुवेग से फैल गई। राज सभामें उल दुष्ट को हाजिर करके न्याय होगा। वह सुनने के लिये इकदम सुवह से मनुष्यों के टोले (लसूह) राज सभाकी तरफ जाने के लिये उमटने लगे। - यह वात भोपाने भी सुनी । वह समझ गया कि मेरा मालिक वंकचुल पकड़ा गया । उस का न्याय आज होगा । भोपा विचार में पड़ गया। शीघ्र ही उसने अपने साथियों को तैयार हो जाने की आज्ञा की।
गुप्त रीत से शस्त्र भी तैयार किये । आज राज सभा में जाना । वहां अपने स्वामी को मालवपति अगर मृत्यु की सजा फरमावे तो अपन सामना करके श्री स्वामी को छुड़ायेंगे एसा निर्णय कर के भोपा अपने साथियों के साथ राज सभा में गया ।
एक पिंजरे में वंकचुल वन्द था। ये देखकर के वंकचुल के साथी खूब गुस्से हुये। लेकिन अभी शान्त चित्त से वैठे रहने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था। .. प्राथमिक कार्य करने के बाद महाराजाने गई काल के चोर का प्रश्न उपस्थित किया । उसमें कहा कि गई काल रातको ही में उस चोर को मिला हूं। मैंने उसकी सव वात सुनी है। और करने योग्य सजा भी मैंने कर दी। हाल तो मैं यही आशा करता हूँ कि उसे पिंजरे में लें मुक्त कर दिया जाय। . - पिंजरे में से बाहर निकल करके वकबुल मालवपति - के चरणों में झुक गया । मालवपति ने उसे योग्य आसन के ऊपर बैठाया । ... . .. ... ... .