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प्रवचनलार कर्णिका .. महाराज! "कागमांस" इलमें लिया जाय तो सात दिनमें ही काया निरोगी बन सकती है। . वीमारीके विस्तर पर सोते हुए वंकचुल के कान पर ये शब्द पड़े। सुनने के साथही वंकचुल इकदम विस्तर पर बैठ गया। . प्रियतम ! प्रियतम ! करती कमला वंकवुलको चिपक गई। प्रियतम ! क्यों बैठ गए ? क्या कुछ चाहिए ?
वंकचुलने धीरे स्वरमें कहा मेरे काग मांसकी वाधा है इसलिये अगर मैं अशुद्धिमें रहूं फिर भी काम मांस मुझे नहीं देना । प्राणोंसे भी मेरी प्रतिज्ञा सुझे प्यारी है। - प्रियतम ! आपकी इच्छा विरुद्ध हम कुछ भी आपको नहीं देंगे।
दूसरी भी कितनी ही बातें करी। अंतमें कचुल ने कहा कि प्रिये ! अव मेरी जिन्दगी का भरोसा नहीं है इसलिये मैं तुम सबको खसाता हूं। मुझे भी सव खमो (माफ करो) इतना बोलते वोलते वंचुल सो गया। बैठे हुए स्वजन रोने लगे। कमला और सुन्दरी भी जोरशोर से रोने लगीं।
विचक्षण मालवपति समझ गया कि अव वंकचुल नहीं बचेगा। मन्त्रियों के साथ मसलत करके एक संदेशा राजा विमलयश पर मालवपतिने भेज दिया । "; दवाई के जोरसे एक महीना निकल गया । अन्त में चतुर्दशी का दिन था, वहाँ तो वंकचुल की व्याधिने जोर पकड़ा। मालवपति आ गए। सबको ऐसा ही लगता था कि चौदस और अमावस निकल जाय तो ठीक । ..