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२४४.
प्रवचनसार कर्णिका . समा जनों को शांत करके मालवपति ने जाहिर किया कि इस चोर की आज से सेरे राज्य का जनरल सेनापति तरीके नियुक्ति करता हूं। : समाजनों ने खूब आश्चर्य का अनुभव किया कि पसा क्यों? लेकिन किसीको भी पूछने की हिमत नहीं थी। वंकल के साथी भोपा वगैरह इस बात से प्रसन्न हो गये। उनले थाश्चर्य का पार नहीं रहा। राजसा विसर्जन कर दी गई । वंकचुल अपने साथियों को मिलने गया । और सव वात कह दी। साथ यह भी कहा कि अब अपन चार दिन में यहां से विदा होंगे। वहां जाकर के सब काम पूरा करके अपने परिवार के साथ पुनः मुझे पीछे यहीं आना है। वहां की जवाबदारी भोपा को संमालनी होगी यह बात सुनकर के साथी खिन्न हो गये। और भोपा तो खूब ही नाराज झुआ । .. मालनपति की अनुमति लेकर बंकचुल अपने साथियों के साथ उज्जयिनी से विदा हुआ। बीस दिनका झड़पी प्रवास करके सिंहपल्ली में प्रवेश किया। . सिंहपल्ली के नर नारियोंने आवसे वधाई दी। रात के समय बंकचुलने अपनी सव हकीकत अपनी पत्नी और वहन को कही । तव दोनो खूब खुशी हुई।
पल्ली में एक महीना रुक के वंकचुलने अपने परिवार. के साथ यहां से विदा ली। विदाके समय पल्ली के प्रत्येक्र. मानवी की आँखमें से सावन-भादों बरसने लगा । वंकचुलको भी जानेका दिल नहीं था। लेकिन कर्तव्य के आगे. मानवी को लाचार बनना पड़ता है।
दो महीना का शान्ति से प्रवास करके वंकचुल