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REETसार कर्णिका
प्रवास का श्रम खूब लगा था, निद्रा लेनेका विचार था लेकिन घर आने के बाद घरकी मोहिनी भूली नहीं जाती, ये संसारी का स्वभाव है । वस्त्र वदलके प्रियतमा के खंडमें गया ।
प्रियतमा के खंडमें प्रवेश करते ही पंकचूल अकन्य दृश्य देखके आश्चर्यमुग्ध वन गया । पलंग के ऊपर अपनी पत्नी और एक नवयुवान पुरुषको सोते हुए देखा । पुरुष का हाथ स्त्रीके वक्षःस्थल पर था, दोनों भरनिन्द्रा में सोये थे । यह देखते ही वकचुल की आँखें क्रोधावेश से लाल चोल हो गई। मेरे जैला पति होने पर भी मेरी पत्नी दूसरे के प्रेममें लुब्ध है तो दोनोंको खत्म कर दूंगा । म्यान में से तलवार बाहर निकाली, लेकिन महात्मा के द्वारा दिया गया नियम याद आया । नियमके अनुसार वह सात डग पीछे हठ गया । तलवार भीत के साथ टकराने से उसका आवाज सुनके पुरुष जग गया। देखता है तो भाई वकचुल खुली तलवार क्रोधावेश में खडा था । एसा क्यों बैठा हो के कहने लगा कि भाई ! एसा क्यों ? चंकचुल चमक उठा, अहो ! ये तो वहन सुन्दरी का आवाज है ! यह जानके तो शरमिन्दा वन गया ।
सुन्दरीने खुलासा किया कि भाई ! आज आपकी पल्ली में नाटक - मंडली आई है । मैं और मेरी भाभी पुरुष वेशमें वहां गए थे जिससे किसीको खबर नहीं पंडे | नाटकपूरा हुआ, दोनों घर आए । नींद खूब आजानेसे मैं कपडे वदले विना ही ऐसी की ऐसी ही सो गई । इतने में तो. तुम आ गए ।
कचुल विचार करने लगा कि जो मैंने नियम नहीं