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व्याख्यान- इक्कीसवाँ
• सकती । वकचूलने अन्धेरा पक्ष (कृष्णपक्ष) की दश दिन तय किया ।
आज दशमी की सांज थी । वकचूलने अपने स को बता दिया कि मित्रो ! आज रातको राजभवनमे करने जानेवाला हूँ । तुम सबको यहीं रहना है । तरहका भय रखने की जरूरत नहीं है । चकचूलक साथी भोपा वोला, महाराज ! तुम्हारी योजना तो सु
देखो, सुनो ! रात्रिका प्रथम प्रहर वितने के राजभवन के पिछले भाग में जाऊंगा । वहाँ किसीका जाना नहीं है ।
मैं भीत के ऊपर "गोह" फेंक करके मकानके चढ़ जाऊँगा । अगासी में से होकर के अन्दर उत वहाँ मालवपति की रानी के खंडका झरोखा है झरोखामें से होकर खंडमें जाऊँगा । इस खंड में सोती है । उस रानीके पलंग के नीचे अलंकारों की रहती है । द्वितीय प्रहर पूर्ण होने तक उस पेटीको मैं पीछे आ जाऊँगा ।
यह योजना सुनके सब अःश्चर्यमें डूब गए । वं की यह योजना सबको फफडादे एसी होनेसे साथि चकचूल पकड़ा जायगा एसी चिन्ता उत्पन्न हो गई
जिससे वे लोग अपने सरदार से कहने ल ऐसा साहस नहीं करो तो क्या हरकत ?
वकचूलने कहा कि हरकत तो कुछ भी नही परन्तु चोरी करने की ये मेरी अन्तिम इच्छा हैं । बाद में चोरी नहीं करूंगा । शान्तिमें रहके जीवन जि एसा कहके वकचूल खड़ा हो गया । चत्र बदल