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प्रवचनसार कर्णिका - दोनों एक दूसरे के सामने एक टकटको से देखने लगे। लेकिन कोई बोलता नहीं था ।
आखिर मालवपतिने पूछा तेरा नाम क्या है? मेरा नाम चोर । मेरे नामको आपको क्या काम है?
वंकचूल का लापरवाही भरा जवाब सुन करके महाराजा ने कहा कि सुन । शास्त्रों में लिखा है कि राजा के पास असत्य नहीं बोलना । तू क्षत्रिय है। इसलिये जो हकीकत हो सच सच कह ।
महाराज । मेरा नाम कचुल । मैं सिंहपल्ली का राजा हूं। और मेरे साथी चोरी करते हैं।
तेरे अव्य चेहरे परसे सिद्ध होता है कि तू चोर नहीं है । राजाने कहा। __ माफ करो महाराज ! मेरा सत्य परिचय दिया जा सके एसा नहीं है।
नहीं, बंकचुल । तुझे तेरा सत्य परिचय देना ही पड़ेगा । राजाने अति आग्रह से कहा ।
महाराज ! ढीपुरी नगरी के विमलयश राजाका मैं. पुष्पचुल नामका पुत्र था । यौवन के प्रथम कालसे ही में चोरी की आदत में फँस गया था। इसलिये महाराजाने मुझे देश निकाल दिया । वहां से मैं मेरी पत्नी और मेरी वहन सुंदरी इस तरह हम तीनो सिंहपल्ली में आके वस रहे हैं । वहां मेरा नाम वंकल तरीके मशहूर हुआ ।
वंकचुल के मुखले सत्य हकीकत सुनके राजा आश्चर्य मुग्ध वनके कहने लगा कि ओहो । विमलयश राजा तो मेरे मित्र हैं। लेकिन तुझे राजभवन में चोरी करने क्यों आना पड़ा?