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________________ . २४० प्रवचनसार कर्णिका - दोनों एक दूसरे के सामने एक टकटको से देखने लगे। लेकिन कोई बोलता नहीं था । आखिर मालवपतिने पूछा तेरा नाम क्या है? मेरा नाम चोर । मेरे नामको आपको क्या काम है? वंकचूल का लापरवाही भरा जवाब सुन करके महाराजा ने कहा कि सुन । शास्त्रों में लिखा है कि राजा के पास असत्य नहीं बोलना । तू क्षत्रिय है। इसलिये जो हकीकत हो सच सच कह । महाराज । मेरा नाम कचुल । मैं सिंहपल्ली का राजा हूं। और मेरे साथी चोरी करते हैं। तेरे अव्य चेहरे परसे सिद्ध होता है कि तू चोर नहीं है । राजाने कहा। __ माफ करो महाराज ! मेरा सत्य परिचय दिया जा सके एसा नहीं है। नहीं, बंकचुल । तुझे तेरा सत्य परिचय देना ही पड़ेगा । राजाने अति आग्रह से कहा । महाराज ! ढीपुरी नगरी के विमलयश राजाका मैं. पुष्पचुल नामका पुत्र था । यौवन के प्रथम कालसे ही में चोरी की आदत में फँस गया था। इसलिये महाराजाने मुझे देश निकाल दिया । वहां से मैं मेरी पत्नी और मेरी वहन सुंदरी इस तरह हम तीनो सिंहपल्ली में आके वस रहे हैं । वहां मेरा नाम वंकल तरीके मशहूर हुआ । वंकचुल के मुखले सत्य हकीकत सुनके राजा आश्चर्य मुग्ध वनके कहने लगा कि ओहो । विमलयश राजा तो मेरे मित्र हैं। लेकिन तुझे राजभवन में चोरी करने क्यों आना पड़ा?
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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