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________________ व्याख्यान - इक्कीसवाँ २३९ राजाने फिर से पूछा कि क्या तूने मेरी प्रियतमा से खराव व्यवहार किया था ? बँकचूल वोला महाराज एकान्त का समय हो । पूर्ण यौवन और आशा का उमंग खिला हो वहां सव वन सकता : है । इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है ।. मतलब कि तू गुन्हा कबूल करता है कि नहीं ?. महाराजा ने सत्तावाही स्वरसें पूछा । वकचूल मौन रहा । मौन ये गुन्हा की कबूलात है । आखिर में उससे पूछा गया कि तुझे कुछ कहना हो तो कह । ना महाराज | मुझे कुछ भी नहीं कहना है । आपको 'योग्य लगे वैसा करो । रानी को बोलने का मौका मिला । और खुद किये स्त्री चरित्र का उसे अभिमान आया. प्रियतम | देखा । कैसा दुट है ? प्रिये ! कुछ भी हरकत नहीं है। तू निश्चिन्त भाव से सोजा । राजा ने रानी को आश्वासन दिया । सैनिको ! इस दुष्ट को पकड़ के राज्य के गुप्त कारावास में ले जाओ। चलो ! मैं भी साथ में आता हूं। इसका -न्याय कल राज्य सभा में होगा । : : कचूल कुछ भी बोले विना सैनिकों के साथ चला | : कारावास उस राजभवन के चौगान में ही था । चंकचूल : को सिपाहियों ने कारावास में पूर दिया : मालवपति भी वहां हाजिर थे। उनने सिपाहियों को रवाना किया । एक दीपक वहां आ गया कारागृह के : 'खंड के दरवाजे बन्द करा के मालवपति और 'वंकचूल -अन्दर बैठे |
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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