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प्रवचनसार कणिका क्यों कि कानू पल्ली का आगवान गिना जाता था। परन्तु काल के आगे किसी की चलती नहीं है। . . .
इस तरह दो नियमों का पालन करने ले वंकबूल भयानक प्रसंगोंले वच गया । जिस से महात्मा के वचनों पर उले अजब श्रद्धा हो गई। : एक समय वंकचूल के कान पर मालव देशकी महारानी के खूब दखाण (प्रशंसा) सुनाई देने लगे। - मालवपति चकोर था । और उले अभियान था कि मेरे राजसंडार में से कोई चोरी कर सके एसा नहीं है। यह बात सुनकर के वंकचूलने तय किया कि मालवपति के राजभवन में से ही चोरी करना । और वह भी सहारानी के खंडसे ले । जिन अलंकारों को महारानी नित्य पहनती है। उन्हीं को चुराना । . वंचचूल आज जीसके बैठा था किन्तु उसके मन को चैन नहीं थी। कव मालवपति का अभिमान उतालं यही. विचार उसके मन में झूम रहे थे।
कबूल के मित्र मा गये महाराजको निराश वदन चैठा हुआ देखकर उसका कारण पूछने लगे।
. कुछ नहीं मित्र! सिर्फ एक चिन्ता ही मुझे हैरान कर रही है। मेरे मन में मालवपति के यहां चोरी करने का विचार है। .. मित्र बोले। क्या कहते हैं महाराज! मालवपति सिंह पुरुष है। उसके यहां से चोरी करना मौतको भेटने वरावर है। सिंह की गुफा में गया हुआ मानवी कभी. भी पीछे नहीं आता ! . . . . . . . . . ... ... ...