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व्याख्यान- इक्कीसव
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पंकचूलने कहा कुछ परवाह नहीं । तुम तैयार हो जाओ अपन वीस जनों को यहां से परम दिवस प्रयाण करने का है । और मालवदेश की राजधानी उज्जैन नगर में पहुंचना है ।
कचूल का अंगत साथी भोपा यह बात सुनकर के जरा चमक गया | महाराज ! जागृत नगरी में चोरी करना मुश्किल है। कचूलने कहा कि मित्र ! सोते हुये पर हमला करने में पराक्रम नहीं है । जगते हुये पर तराप मारना ( हमला करना) ये पराक्रमी का कर्तव्य है । कितनी ही चातें करके सब बिखर गये |
दूसरे दिन पल्ली में यह बात फैल गई कि अपना सरदार बील युवानों के साथ उज्जैन में चोरी करने जाने वाले हैं । इस वात से लोगों में आश्चर्य फैल गया कि एसा बड़ा साहल क्यों करते होंगे ! लेकिन वकचूल के सामने वोलने की हिम्मत नहीं थी ।
आज सिंहपल्ली में नगारे बज रहे थे । चारों तरफ लोग आनन्द में झूम रहे थे । नारियां मंगल गीत गा रहीं थीं । इतना आनंद क्यों ? एसा क्या प्रसंग यहां उपस्थित हुआ ? आज वकचूलकी महारानी कमला देवीने एक तेजस्वी पुत्रको जन्म दिया । पुत्र जन्म की बधाई सुनकर बँकचूल बहुत प्रसन्न हुआ ।
जिस भवन में पुत्रका रुदन और हास्य नहीं है । वह भवन सूना लगता है । आज तक सूना लगता बँकचूल का भवन पुत्रके जन्मसे मानो नव पल्लवित वन गया था | दासियों में चपलता वढ गई थी । रक्षक आनन्दित वन गये थे । चारों तरफ से नरनारी पुत्र