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व्याख्यान - इफ्कीसवाँ
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- वकचूल अपने दोनों साथियों के साथ पांथशाला में से निकल गया । कोटवाल के भवन के नजदीक पहुंचने पर उनको मालूम हुआ कि कोटवाल अपने परिवार के साथ रथमें बैठ के विदा हो रहा है । यह देखकर चंकचूल प्रसन्न हो गया। दो घड़ी में दोनों साथी भी आ गए । योजना के मुताबिक भीत ( दीवाल) कूदके तीनों जन अन्दर आ गए। बाहर की डेलीमें एक चौकीदार हुक्का पीता हुआ बैठा था । पासमें एक झांका दीपक जल रहा था । दूसरा कुछ भी नहीं । इस दृश्यसे वकचूल को संतोष हुआ | धीरे पैर रखते हुए भवनमें प्रवेश किया । भवनमें जा के देख लिया कि भवनमें कोई नहीं है । फिरसे बाहर आकर के दोनों साथियों को इशारा से अन्दर बुलाया | तीनों जन भवनवें घुस गये ।
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कोटवाल के शयनगृह में एक भोयरा था, ये वात चकचूल को मिल चुकी थी । उसके अनुसार शयन खंडमें आ के चारों तरफ देखने लगा परंतु कहीं भी भयरा नहीं दिखाया । चकचूल विचारमें पड़ गया ।
उसके साथीने पूछा कि महाराज ! आपको खवर है कि कोटवाल का धनभंडार कहाँ है ? वेकचूलने साथीदार से कहा कि कानु ! मुझे पक्की खबर है कि कोटवाल का "धनभंडार शयनगृह में ही है ।
वकचूलने तपास करने पर पलंग के नीचे उसकी मजर एक चिराड (तराड ) पर पड़ी । धीरेसे उस चिराड मैं शल डालके लादीको ऊँचे उठाई । दोनों साथी चमक गए। उन विचारों को तो खबर भी नहीं थी कि हमारे सरदार की चकोर दृष्टि सब माप सकती हैं।