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________________ व्याख्यान - इफ्कीसवाँ २२३ - वकचूल अपने दोनों साथियों के साथ पांथशाला में से निकल गया । कोटवाल के भवन के नजदीक पहुंचने पर उनको मालूम हुआ कि कोटवाल अपने परिवार के साथ रथमें बैठ के विदा हो रहा है । यह देखकर चंकचूल प्रसन्न हो गया। दो घड़ी में दोनों साथी भी आ गए । योजना के मुताबिक भीत ( दीवाल) कूदके तीनों जन अन्दर आ गए। बाहर की डेलीमें एक चौकीदार हुक्का पीता हुआ बैठा था । पासमें एक झांका दीपक जल रहा था । दूसरा कुछ भी नहीं । इस दृश्यसे वकचूल को संतोष हुआ | धीरे पैर रखते हुए भवनमें प्रवेश किया । भवनमें जा के देख लिया कि भवनमें कोई नहीं है । फिरसे बाहर आकर के दोनों साथियों को इशारा से अन्दर बुलाया | तीनों जन भवनवें घुस गये । - कोटवाल के शयनगृह में एक भोयरा था, ये वात चकचूल को मिल चुकी थी । उसके अनुसार शयन खंडमें आ के चारों तरफ देखने लगा परंतु कहीं भी भयरा नहीं दिखाया । चकचूल विचारमें पड़ गया । उसके साथीने पूछा कि महाराज ! आपको खवर है कि कोटवाल का धनभंडार कहाँ है ? वेकचूलने साथीदार से कहा कि कानु ! मुझे पक्की खबर है कि कोटवाल का "धनभंडार शयनगृह में ही है । वकचूलने तपास करने पर पलंग के नीचे उसकी मजर एक चिराड (तराड ) पर पड़ी । धीरेसे उस चिराड मैं शल डालके लादीको ऊँचे उठाई । दोनों साथी चमक गए। उन विचारों को तो खबर भी नहीं थी कि हमारे सरदार की चकोर दृष्टि सब माप सकती हैं।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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