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प्रवचनसार कणिका
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वंकचूलने औषधि से ओटोमेटिक दिया कर दिया । .. झांके प्रकाशले खंड भर गया। एक साथीको बाहर रखके दूसरे साथी कानुको लेकर वंकचूलने अन्दर प्रवेश किया।
झांखे प्रकाशमें देख सका कि कुवेरको शोभा दे ऐसी धनसंपत्ति यहाँ भरी है लेकिन क्या कामकी? जो मनुष्य लक्ष्मी का सव्यय नहीं करते वे मनुष्य सरके लक्ष्मी के ऊपर साँप होंके फिरते हैं। पापानुबंधी पुन्य से मिली । लक्ष्मी अच्छे काममें नहीं चपराती है।
वंकचूलने एक तिजोरी के तालेको एक मिनटमें तोड़ .. दिया । तिजोरी में असूल्य हीरा पड़े थे। वंकचूलने तीन थैला हीरा ले भर लिए । तिजोरी बंद कर दी । भोयरे. ऊपर की लादी पेक करके ऊपर आ गए। जरा भी आवाज किये विना वंकचूल उस भवन के बाहर निकल गया।
जिस मार्ग से आये थे उसी मार्ग से पांथशाला में तीनो जन पहुंच गये । इसके बाद अश्वों के ऊपर आरूढ हो के नगरी में से रवाना हुये। नगरी में से आठेक मील निकल जाने के बाद कोटवाल अपने भवन में आया ! भवन के मुख्य द्वार में वंकचूल कनु नाम का साथी मौजडी (जूती) भूल गया था। वह मौजडी पांथशाला में आने के . वाद याद आई। वंकचूलने पीछे लेने जाने को मना कर दिया। . .
- मौजडी देख के कोटवाल चौंक उठा । क्या? कोई भवन में गया है ? अंदर जाके देखातो भवन में कोई नहीं । था । पलंग के नीचे द्रष्टि करने से भी कोई नहीं दिखाया। . तो ये मौजड़ी आई कहां से? यहां कोई आया था। चौकीदार को पूछा। चौकीदार ने कहा ना साहेब ! महाराज!