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________________ २२५ व्याख्यान-इक्कीसवाँ मैं डेलेमें बैठा बैठा हुक्का पीता था। कोटवाल ने पूछा तो फिर ये मोजडी आई कहां ले ? कोटवाल शयनगृह में आकर के पलंग के नीचे से भोयरा में गया । तिजोरी खोल के देखने लगा तो उसमें एक भी हीरा नहीं था । गजब हो गया। कोटवाल की. छाती धड़कने लगी। सगड देखने वालों को बुलाया । सिपाहियों को भी बुलाया । ... ... अन्य तैयार थे। दो जन लगड देखनेवाले दश सैनिक - और कोटवाल यों तेरह जन रवाना हुये। सगड देखनेवाले (डगों की परीक्षा करनेवाले ) आगे चल रहे थे। सगड तलाश करते करते पांथशाला में पहुंचे। तलाश करने से मालूम हुआ कि तीन व्यापारी यहां आये हुये थे। उनका वाहर ले कोई जरूरी संदेशा आने से पिछली रात यहां से विदा हो गये। तीनों अश्वारोही थे। कोटवाल समझ गया कि तीनों व्यापारी नहीं किन्तु चोर होना चाहिये। सूर्योदय हो जाने से तीनों घोडों की टाप स्पष्ट दिखाई देती थीं। उनके पगले पगले (निशानी के मुताविक) कोटवाल अपने सैनिकों के साथ घोड़ा दौड़ाता था। ... शिक्षा प्राप्त किये घोडे. पूरे वेग से दौड़ रहे थे। वंकचूल के घोड़े भी शिक्षित थे। इसलिये उनको भी बांधा. (विरोध) नहीं था। कानु वोला महाराज! थोड़ा विश्राम कर लें। क्योंकि अब अपने को भयका कोई कारण नहीं .: है. । वंकचूल को भी निर्भयता लगी। उस जगह नहर का पानी वहने से मुखप्रक्षाल आदि करने वे वहां रुक गये। , शौच कर्म से निवृत्त होकर तीनो जन स्नान करने
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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