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________________ २२६ प्रवचनसार कर्णिका वैठे । वहां तो वकचूल के तीव्र कर्णपुट पर अश्वों की आवाज सुनाई दी । कानुने उसने कहा कि कोटवाल अपने सिपाहियों के साथ अपने पीछे आ रहा हो एसा मालूम होता है । अश्वों की आवाज स्पष्ट बनती जाती है। कानूने कहा हां महाराज | आपका अनुमान सच है । अव अपन क्या करेंगे ? घवराने की जरूरत नहीं है ॥ चलो अपन अपने घोड़े जंगल में आड़े दौड़ा दें । जंगल घास खूब होने से उसे नहीं दिखायेंगें और कोटवाल भूल स्वाजायगा । तीनों अश्व तीर की तरह चले । कोटवालने खूब तलाश कराई किन्तु कहीं भी नहीं मिले | कोटवाल निराश वदन पीछे फिरा । इस तरफ मध्यान्ह वीत गया होनेसे वंकचूल और उसके साथियों के घोडे भी थक गये थे । कानूने कहा कि मार्ग अनजान है । इसलिये अपन विश्राम लें । अश्वों को शांत किया । एक वृक्षके नीचे वंकचूल बैठ गया । खूब भूख लगी होने पर भी पास में कुछ भी नहीं होने से खाना क्या ? कानूने बड़े बड़े पके हुये तीन फल लाकर के वक्चूल सामने रक्खे | लो महाराज । ये फल आरोगो (बाओ) | इनकी सुगंध कितनी मजा की है । देखने में भी कितने सुन्दर हैं । 1 वेकचूलने पूछा कानु। इस फल का क्या नाम है ? सहाराज ! नासको तो मुझे खबर नहीं है । अभी नामका क्या काम है ? कितने सुन्दर पके हुये फल है ? ' एक एक फल खाने से क्षुधा और तृषा दोनो मिट जायेगी । •
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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