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________________ - २२२ प्रवचनसार कर्णिका आज तीसरे दिनकी संध्या थी भोजन से निवृत्त हो । करके वंकचलने अपने साथियों को योजना समझा दी ! .. देखो । कल यहां के कोटवाल के यहां चोरी करना है। क्योंकि कोटवाल लांच रिश्वत वहुत लेता है। उसके : यहां अपार सम्पत्ति है। वैभव का पार नहीं है। इसका भवन राजमार्ग से दूर है। इसके भवन के पीछे एक खिडकी है। उस खिडकी को पकड के भीत कृदना है । और फिर भवन में प्रवेश करना है। कल इसके भवन में कोई भी नहीं रहेगा क्योंकि भवन के सभी सभ्य प्रथम प्रहर पूर्ण होते पहले आम्र उद्यानमें घूमने जानेवाले हैं। पूरी रात वहीं वितायेंगे। और ठीक सुवह भवन में पीछे फिरेंगे। पूरी रात भवनमें कोई भी रहनेवाला नहीं है। भवनका एक चौकीदार डेलामें बैठा होगा। भवनका मुख्य दरवाजा डेलासे तीस फूट दूर है। मार्गमें लता और पुष्पवृक्ष होने से अपन सरलता से भवनमें जा सकेंगे। इस योजनामें हम सभी सफल होंगे। ___ दूसरे दिन वंकचूलने पूरी तलाश करके जान लिया कि कोटवाल जानेवाले हैं। सायंकाल सभीने. जाने की तैयारी कर ली। पांथशाला के. संचालकने पूछा कि यों 'एकाएक कहाँ पधार रहे हो ? वंकचूलने कहा कि महाशय ! आज ऐसे समाचार मिले हैं कि बाजार खूव. घट रहे हैं, इसलिये जाना पड़े ऐसा संयोग है। फिर भी अभी हम . “नायेंगे । लो भाव ठीक लगेगा तो रूक जायेंगे, नहीं तो प्रस्थान करेंगे। ले ये सुवर्णमुद्रा ! प्रसन्न रहना । संचालक प्रसन्न हो गया । .. . प्रसन्न २. . .. . . .. . .. .. .: : :
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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