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व्याख्यान-इक्कीसवाँ
२२१ लिया होता तो आज वहन और पत्नी इस तरह दोनोंकी हत्या का पापी में बन गया होता । इस हत्यामें से कोई वचानेवाला हो तो महात्मा के द्वारा दिप गए नियम हैं। धन्य हो महात्माको।
दोपहर का समय था, भोजन से परवार के वंकचुल अपने दो साथियों के साथ वार्तालाप कर रहा था, इतने में एक साथी बोला, महाराज! तुम चोरी करने जाते हो लेकिन हमको कभी भी साथमें नहीं ले जाते। आज तो चलो हम दोनों साथ ही आते हैं।
वंकल के खास साथी चोरी करने गये थे। वे सभी तक नहीं आये थे । उनको लिये विना जाना वंकल को ठीक नहीं लगा। तो भी पीछे विचार किया कि चलो इन दोनो की भी जरा इच्छा पूरी करूं और थोडा भी माल ले आऊं । इतने में भोपा वगैरह मित्र भी आ जायेंगे । एसा विचार करके वंकल वोला सामको प्रयाण. . करने के लिये तैयार हो जाओ । तीन अश्व भो तैयार रखना। - संध्या की आरती करके वंकचूल दो मित्रों के साथ रवाना हुआ। साथियों से कहा कि यहां से वीस कोश दूर वीतरना नगरी है। वहां अपनको जाना है। तीन अश्व तीर वेगसे चले । तीसरे दिन की संध्या के समय वीतरना नगरी में दाखिल हुये । एक पाथशाला (धर्मशाला). में उतरे । पाथशाला का संचालकं खूब भद्रिक था। वंकचूलने उसे एक सुवर्ण मुद्रा दे दी। संचालक खुश हो गया। वंकचूल और उसके साथियोंने तीन दिन रहा. करके नगरी का पूर्ण परिचय प्राप्त कर लिया ।...