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प्रवचनसार कर्णिका मुनि भगवन्तने कहा कि हम चार महीना तुम्हारे यहां रहे थे । इसलिये चार वात हम्हें कहना है । ये चार वात तुम्हें मानना पड़ेंगी।
भगवन्त मेरे से बने गीतो अवश्य मानूंगा। तव.. गुरु भगवन्तने नीचे मुजव चार नियम ग्रहण करने को कहा।
(१) पहले नियम में कहा कि किसी भी जीव पर घा (हमला) करने के पहले सात कदम पीछे हठके फिर घा करो। . (२) दूसरा नियम बताया कि सात्विक आहार लेना। और अगर यह भी नहीं बने तो "अनजान फल नहीं खाना"। जिसका नाम नहीं जानते उसे अजाण्यु फल ( अनजान फल ) कहते हैं।
(३) तीसरा नियम यह दिया कि परस्त्री को बहन के समान मानना । और अन्त में राजाकी पट्ट रानी के साथ तो विषय भोग नहीं करना ।
(४) चौथा नियममां समक्षण के त्याग का। और यह भी न बने तो कागडा (कौवा) का मांस नहीं खाना । . हे महानुभाव ! हमारे चार मास के स्थिर वास की यादी तरीके ये चार नियम तुमको देना हैं । तुम ग्रहण करोगे ?
हां भगवन्त । इसमें क्या बड़ी बात है। एसा कह के वंकचूलने इन चारों नियमों की गुरु के पास नतमस्तक. हो के प्रतिज्ञा ली। .. . . . . . . . .
प्रतिज्ञा पालन में अडिग रहने की भलामण पूर्वक