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प्रवचनसार कर्णिका
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. उनमें एक मित्रने वातकी कि महाराज करीव तीन.... महीना से चोरी नहीं की। अव तो चोरी करना चाहिये। क्यों कि चोरी के विना पल्लीवासीयों का जीवन कैसे चले ?
वंकचूल मित्रोंकी वातको वधा लेते हैं (मंजूर करता. . हैं) और अपने एक खास मित्र भोपासे कहने लगा कि भोपा! तैयार हो जा। कल अपन दश जनोंको रवाना होना हैं । दश अश्व वगैरह तैयार चाहिए। अपन सब एक छोटे सार्थवाह के रूपमें मथुरा नामकी नगरीमें जायेंगे। वहाँ किसी पांथशाला में उतरेंगे। वहाँ जाके चोरी की जोजना वनायेंगे।
यह बात सुनकर भोपा विचारमें पड़ गया। क्योंकि अभी तक भोपाने जितनी चोरी की वे सब छिपी रीतसे. छोटी छोटी चोरी थीं। कभी भी योजनापूर्वक वडी चोरी नहीं की थी। आज यह वात सुनकरके भोपा आश्चर्यमुग्ध बन गया और वकचूल के सामने कुछ भी जवाब नहीं दे सका। . दूसरे दिन सूर्योदय के समय दश अश्व रवाना हुए। पल्लीवासियों ने जयध्वनि गजा दी। दशों थश्व गतिमान वनें। सिंहपल्ली से पचास कोश दूर आई मथुरा नगरीमें धीरे धीरे वह पहुंच गए। उत्तरदिशा की एक छोटी पांथ. शालामें उनने उतारा किया यह पांथशाला गाँवले थोडी दूर थी। यहाँ कोई उतरता नहीं था। क्योंकि यहाँ पानी आदि व्यवस्था (सगवड) का अभाव था। फिर भी वंकचूल अपने साथीदारों के साथ यहीं उतरा।
एक सप्ताह के रोकाण दरम्यानः वंचूल: रोज़ फिरने ।