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प्रवचनसार कणिका
भयंकर अटवी में विचरते सुनिवृन्द को देखकर वकचूल उनके नजदीक जाकर सम्मानपूर्वक पूछने लगा कि हे महात्मन् ! एसी भयंकर अटवी में क्यों आये हो ?
वकचूल की कड़क सत्तावाही होने पर भी सुसंस्कारी वाणी को सुनकर सुनि आनन्दित बनें | वडील ( बड़े ) मुनिराजने कहा कि महानुभाव ! किसी बड़े नगर में पहुँच जाने की धारणा से बिहार किया था किन्तु पांच दिनतक एकधारी वर्षा चालू रहने से हम एक खंडहर मकान में ठहर गये । आज वर्षा बंद होने से हमने विहार किया है । अब जो वने सो ठीक। हमको तो नगर और जंगल दोनो बराबर हैं । कहीं भी जाकर के संयम का पालन करना है ।
हम इस अदी में रह के भी चार मास व्यतीत कर सकते हैं । परन्तु लाघु धर्म की मर्यादा का पालन हमारे लिये अत्यावश्यक है । महानुभाव ! यहां नजदीक में मानवीयों की वसती है। मुनि भगवन्त ने वंकचूल से पूछा । हां महाराज ! यहां से एक कोश दूर हम रहते हैं। वहां पक पल्ली है उस पल्ली का नाम " सिंह गुफावली " है। वहां आपको रहने के लिये वसती देंगे । परन्तु एक शरत को मंजूर करो तो देंगे । वकचूल ने खुलासा किया ।
मुनि भगवन्त ने पूछा कि एसी कौन सी शर्त है ? वह मुझे कहो । मुझे योग्य लगेगी तो मैं मंजूर करूंगा। वकचूलने कहा देखो महाराज ! आप हो संतपुरुष और हम हैं चोर ! आप हो त्यागी और हम हैं रागी !. आप तो हो तारणहार और हम हैं मारनार ! हम तो चोरी, लूट और खून करनेवाले हैं। चोरी नहीं करें तो हमारी आजीविका नहीं चले । लूट नहीं करें तो हमारा