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व्याख्यान-इक्कीसवाँ
२०९ परिवार रखड जाय। लूट और चोरी करते हुए किसी समय खून भी करना पड़े इसलिये तुम्हारा मार्ग अलग और हमारा मार्ग अलग! .
तुम्हारे संग अगर हम आयें तो हमारा रोटला नष्ट हो जाय, टल जाय और अगर हमारी सोबत आप करो तो आपका लाधुपना चला जाय इसलिये तुम्हारा और हमारा मेल मिलेगा नहीं। मैं खुद इस पल्ली का नायक हूं, मेरा नाम वंकल है। .
. . मुनि भगवन्त बोले, नाम तो तुम्हारा उत्तम है। महानुभाव.! तुम उत्तम कुलवंशी लगते हो ! अगर तुम्हें कोई विरोध न हो तो तुम तुम्हारे कुलका परिचय दोगे? . . .. . .. . . .. . - वंकचूलने कहा महाराज! मेरे कुलवंशकी बात वहुत लम्बी है। आज कर्मयोगसे पल्लीपति बना हूं और चोरी करके जीवन जीता हूं। आपके साथ सेरी शर्त यह है कि आप खुशीसे मेरी पल्ली में चातुर्मास · रहो । हम सब आपकी सेवा अच्छी तरहले करेंगे। परन्तु आप जवतक हमारी पल्ली में रहो तव तक किसीको भी धर्मोपदेश नहीं देना । . . . . . . . ...कडक शर्त सुनके महात्मा विचार में पड़ गये । अनेक स्थानमें वस कर के अनेक को उपदेश देना इसकी अपेक्षा. तो एक पल्लीपति को ही युक्ति से भविष्य में सुधारना ठीक है। . . . . . . . . . . . . . .. .. परन्तु ये सुधरे कहां से ? उपदेश सुनने की तो पहले से ही मना करता।. . .. .. ... ... .. . : . विचार में पड़े हुये महात्मा को देखकर वंकचूल कहने १३.