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प्रवचनसार कर्णिका:
लगा कि प्रभो । आपका धर्म सुनाने का कर्तव्य सच्चा । परन्तु मुश्किली यह है कि आपका उपदेश हमको जच जाय और हम चोरी छोडें तो भूखे मर जायें । इसी लिये मैं शर्त करता हूं |
इतनी निखालसभरी छल कपट रहित सत्य वाणी से सुनि प्रसन्न हो गये । अवसर के जाननेवाले महात्माओंने समय पहचान लिया ।
महानुभाव | तुम्हारी शर्त को हम कबूल करते हैं । हम्हें तुम्हारी पल्ली में रहने की अनुज्ञा दो ।
कचूल प्रसन्न वदन से बोला कि महात्मन् | मैं धन्य चना | पधारो मेरी पल्ली में । वहां एक पांथ शाला के चार रूम हैं । प्रांगण है । उसमें आप विराजना | आपके आहारपानी की व्यवस्था मेरे भवन में हो जायगी। आपको किसी तरह की तकलीफ नहीं होगी ।
मुनि मंडल को लेके बंकचूल पल्लीं में आया । पांथ शाला खोल दी । हवा प्रकाश से भरपूर चार रूम में महात्मा उत्तर गये फिर वकचूल से पूछा कि महानुभाव, जिन मन्दिर है कि नहीं ? वंकचूलने कहा कि महाराज । जिन मन्दिर तो नहीं है । किन्तु मेरी बहन और मेरी पत्नी प्रभु के दर्शन किये विना पानी भी नहीं पीतीं इसलिये उनके पास प्रभु पार्श्वनाथ की एक स्फटिक की प्रतिष्ठित प्रतिमा है ।
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अति उत्तम । तुम्हारा भवन कहां है ? मुनि ने पूछा चकचूल ने अंगुली से अपना मकान बताया। प्रसंगोपात्त थोडी वात चीत कर के वकचूल रवाना हुआ । ... ये पल्ली वासी तमाम नर नारी एक काले वस्त्र के
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