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व्याख्यान-इक्कीसवाँ
२०३ युवराज को एसी सख्त सजा होती देखकर प्रौढवर्ग विचारमें पड़ गया । मन्त्रीश्वरने खडे होकर के महाराजा से विनती की कि एक वार भूलको क्षन्तव्य गिनके माफ करो जिससे सुधरने का मौका मिले ।
- महाराजा चोले-भूलकी क्षमा करने से प्रजा चाहे जब चाहे जैसी भूल करेगी। इसलिये एसी भूलकी क्षमा नहीं हो सकती है।
राजसभा विसर्जन हुई । राजभवन में शोक की भारी लागणी फैल गई यानी सभी दुःखी हो गए । वंकचूलकी माता, पत्नी और छोटी वहन आदि परिवार शोकसागर में डूब गया। ... . .. .. ... वंकचूल सीधा राज्य भवन में आकर के माताको अन्तिम नमस्कार करने लगा। नमस्कार करते पुत्रको माता सजल नयनसे देखती रह गई। आशाका महल टूट गया । जिस पुत्रके लिये अनेक आशायें थीं वे टूट के भुक्का (चूर चूर) हो गई। निराश वदन जाते हुए पुत्रको देखकर आँसू के आवेशको माता नहीं रोक सकी। :
वकचूल वहाँ से सीधा अपनी प्रियतमा के खंड में गया। यहाँ पत्नी कमलादेवी हिचकी लेकर रो रही थी। वंकचूल शान्त करके जानेकी तैयारी करनेका उसे आदेश देता है और अगर साथमें आने की इच्छा न हो तो घर . पर ही रहने की आज्ञा देता है। वहन सुन्दरी को अपने . भाई के ऊपर अपार ममता होनेसे वह भी साथमें जानेको तैयार हो गई। . . . . - दूसरे दिनकी मंगल. प्रभात में एक रथ और पांच घोड़े तैयार हो गए। रथमें कमला, : सुन्दरी और तीन