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व्याख्यान-वीसी
विचार करने लगा कि ये वेदनादायी आवाज कहां से आती है ? एक वार जिसको सुनने का दिल में उत्सुकता जग जाती थी। उसकी वहो आवाज आज इसको अच्छी नहीं लगती थी। क्योंकि शरीर अशातावेदनीय अनुभवतां था। पापोदय के समय सुख भी दुखरूप लगे वह स्वाभाविक सत्य है। .पत्नियों ने कहा-प्राणनाथ! यह आवाज कंकन की है। राजर्षि ने कहा मुझे यह आवाज कर्णकटु लगती है। अच्छी नहीं लगती। . स्त्रियोंने कंकन उतार दिये। सिर्फ एक एक कंकन को सौभाग्य के चिन्ह तरीके रखा।
थोड़ी देर में नभिराज फिर पूछने लगा कि अव आवाज क्यों नहीं आती? स्त्रियों ने कहा कि सौभाग्य
तरीके एक एक कंकन रख के वांकी के सव उतार के ... रख दिये हैं। ....
.. ओ ! हो! दो में अशान्ति है। एक में शान्ति है। एकत्वभावना के विचार में मस्त बन गये। वीमारी के विस्तर पर सोते हुये नभिराजा को कंकन में से वैराग्य जन्मता है । आत्मज्ञान होता है । मृत्यु के समय सबको छोड़ के अकेला जाना हैं। बस ! बीमारी मिट जाय तो दोक्षा लेना । कैसा सुन्दर निर्णय किया?
. मधुर वस्तुओं की विषमता और दाहज्वर की पीड़ा के निमित्त ने नभिराजा को वैराग्यवासित वना दिया। - पापी आत्माओं को भी महापुरुषों का संयोग भवभ्रमण को टालने वाला वन जाता है। और दुष्टजीवों के हृदय में क्षणमात्र में भी अजव पलटा आ जाता है।