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प्रवचनसार कर्णिका जैसे घोड़े को लगाम की जरूरत है इसी प्रकार इन्द्रियों को संयम रूपो लगामकी जरूरत है। '. भगवान की देशना सुनके जो मनुष्य जीवन में कुछ भी व्रत नियम नहीं लेता है उसका जीवन बेकार हैं। सामान्यपनले लिया हुआ नियम-नियमधारक के जीवन में पलटा जा सकता है। इसलिये मनुष्यको जीवन में व्रत नियम यथा शक्ति कुछ ने कुछ अवश्य लेना चाहिये।
किसी एक नगरी में विमलयश राजा की ध्वजा फरकंती थी। प्रजाप्रिय और धर्म के सुसंस्कार से सुवासित पले इस राजा पर प्रजा की अपार प्रीति थी । इस विमलयश राजा को रूप में रम्भा समान थौर ाक्षांकित एसी देवदत्ता नाम की रानी थी। वो अपने पति के मुखमें से निकलते वेण को झील लेने में ही परम आनन्द मानती थी। .:.
इसे राजा रानी को पुष्पचूल नामका एक पुत्र था। अपने पुत्रको सुसंस्कारी बनाने में उसके माता पिताने पूरा ख्याल रक्खा था । पुत्र में बुद्धि कौशल्य अपार होने से शस्त्र विद्या में भी वह निपुण और शूरवीर वना। परन्तु उसके जीवन में चोरी का जवरजस्त व्यसन पड़ गया था। इस. व्यसन से मदिरापान विना उसको चलता ही नहीं था, एसी कुटेवों के कारण से मातापिता खूप दुख अनुभवते. थे। एसे दुर्व्यसनी युवराज को मेरी प्रजा किस तरह से भविष्य का राजा तरीके स्वीकार करेगी उसकी चिन्ता उस राजा-रानी को दिन और रात खूब सताती थी ।
रूपवान एसी कमलादेवी के साथ मातापिता ने पुष्पचूल. का लग्न कर दिया था फिर भी पुष्पचूल उसके प्रति रागी नहीं बन के चोरी में ही मस्तं. रहता था ।