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प्रवचनसार कणिका
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जीवन में लगी हुई चोरी की भयंकर कुटेव ले त्रासी गई। प्रजाने महाराजा के पास आकर के विनती पूर्वक कहा है कि. युवराज को समझाबो नहि तो प्रजा का रोप वढ जायगा। इसलिये आप से मेरी नन्न विनती है कि आप चोरी के व्यसन से जल्दी मुक्त बनो। आपकी प्रियवेन सुन्दरी भी आपकी इस कुटेव से दुखी वन रही है। किन्तु आपसे कहने को किसी की हिम्मत नहीं चलती है। पत्नी का धर्म. होने से आज मैं आपसे विनंति करती हूँ तो मेरी विनंती का आप स्वीकार करो। . पत्नी के ये वचन सुनकर पुष्पचूल कहने लगा कि हे प्रिये, मेरे मातापिता की, वहन की और तेरी भ्रमणा है मैंने कभी भी चोरी नहीं की। मंत्री पुत्र कोटवाल पुत्र ये मेरे मित्र होने से हम एक साथ हिरते फिरते होने से प्रजा लोग अनुमान करते होंगे कि मैं चोरी करता हूं। परन्तु उनकी वह वात विलकुल खोटी है। . . . . अपनी भूल को छिपाने की बात करते हुये पुष्पचूल का वचन सुन के कमलादेवी ने कहा कि हे स्वामिन् ! प्रजाजनों की फरियाद विलकुल सच्ची है। आप जुआ खेलने में खूब रस लेते हैं । कमलादेवी के द्वारा स्पष्ट वात कही जाने पर पुष्पचूल वोला ना रे ना! यह तो केवल मनके आनन्द के लिये किली वक्त खेलता हूं। बाकी मुझे तो हैया में विलकुल भी रल नहीं है। - कमलादेवी ने कहा कि आप अपनी कुटेवों को छिपाने के लिये ही प्रयत्न कर रहे हो ? मैंने तो यहां तक सुना है कि आप रूपवती वेश्यायों के पीछे भी भटकते हो । इस तरह आप अपना जीवन खराव कर रहे हो। वह योग्य नहीं है।