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व्याख्यान - इक्कीसव
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समवशरण के चारों तरफ वीस वीस हजार सीढियां होती है । परन्तु सीढियों को चढने में अपन को थकावट नहीं लगती एसा तीर्थकर देवों का अतिशय है । समवशरण का दर्शन करनेवाला नियमसे भवि होता है । समवशरण की रचना देखकर के आँख मुग्ध बन जाती है ।
सुशिष्य इंगिताकार को जाननेवाले होते हैं । गुरु को कुछ भी कहना नहीं पडे बिना कहे समझ जाय कि गुरु की यह इच्छा है उसे इंगिताकार कहा जाता है ।
सर्वस्व जगत को एक क्षण मात्र में पलट देने का सामर्थ्य धरने वाले होने पर भी करुणा सिंधु तीर्थकर देव सर्व जीवों का रक्षण करते हैं । तीर्थकर स्वयं ऊँचे से ऊँची अहिंसा का पालन करके फिर जगत को अहिंसा का उपदेश देते हैं ।,
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मदिरापान के नशे के समान युवानी का नशा युवानी में जो धर्म के संस्कार न हों तो जीवन खेदान- मैदान (नष्ट) वन जाता है ।
कामेच्छा का प्रभाव युवावस्था में इतना ज्यादा होता है कि उससे मनुष्य सारासार (अच्छे बुरे ) का विवेक भी भूल जाता है । यौवन के उन्मादमें दुष्ट विचारों का प्रभाव ज्यादा होता है। इस हिसाब से ही चौवन अनर्थ का कारण है। जीवन में संयम न हो तो युवानी दीवानी वन जाती है । ऐसी अवस्था में सत्ताधीशपना लक्ष्मीवानपना आदि अग्नि को दीप्त करने जैसे हैं ।
परंदारा का सेवन करनेवाले को परमाधामी देव नरक में अग्नि ले तपाईं हुई लोहे की पुतलियों से बाथ भिड़ाते हैं । ( आलिंगन कराते हैं ) ।..
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