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प्रवचनसार कणिका.
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करना पड़ेगा। खाली करने के समय प्रसन्न रहना। जितनी प्रसन्नता उस समय होगी, उतनी गति सुन्दर होगी।
अपन जव जन्मे थे तब रोते रोते जन्मे थे। क्योंकि उस समय अपने हाथ की वात नहीं थी। लेकिन मरतें । समय कैसे मरना ये अपने हाथकी बात है। - पुदगल में सुरभिगंध और दुरभिगंध दोनों हैं। जगत की चिन्ता करने वाले बहुत हैं और आत्मा की चिन्ता करनेवाले कम हैं। जब तक आत्म चिन्ता नहीं जगेगी तब तक श्रेय नहीं है।
समकित दृष्टि आत्मा घरको जेल मानता है। जेलमें रहा हुआ कैदी जेल से छूटने के दिन गिनता है उसी प्रकार सभकिती आत्मा घरमें रहके दिन भी गिनता है कि इस संसारमें से कव छूटुं। : जिस मनुष्यको धर्म करनेका मन ही नहीं होता उस . मनुष्य का जीवन बेकार है। · · धर्मका भूल सम्यग्दर्शन है। महापुरुष संयम रत्न को ... प्राप्त हुए हैं । इस जीवनमें से. चेतना चली जाय तो काया कोई भी क्रिया नहीं कर सकती।
आत्मा का असाधारण लक्षण उपयोग है। उपयोग दो प्रकारके हैं :- (१) ज्ञानोपयोग (२) दर्शनोपयोग। .: आकाश दो भागों में बंटा है—(१) लोकाकाश (२) अलोकाकाश। जितने आकाशमें छः द्रव्य हैं उतने तक
आकाश को लोकाकाश कहते हैं और जहाँ आकाश द्रव्य .. . ही हो शेष पांच द्रव्य न हों वह अलोंकाकाश कहलाता
है। सिद्धके जीव लोकाकाश के अग्रभागमें रहते हैं। ..