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________________ व्याख्यान - इक्कीसव १९३ समवशरण के चारों तरफ वीस वीस हजार सीढियां होती है । परन्तु सीढियों को चढने में अपन को थकावट नहीं लगती एसा तीर्थकर देवों का अतिशय है । समवशरण का दर्शन करनेवाला नियमसे भवि होता है । समवशरण की रचना देखकर के आँख मुग्ध बन जाती है । सुशिष्य इंगिताकार को जाननेवाले होते हैं । गुरु को कुछ भी कहना नहीं पडे बिना कहे समझ जाय कि गुरु की यह इच्छा है उसे इंगिताकार कहा जाता है । सर्वस्व जगत को एक क्षण मात्र में पलट देने का सामर्थ्य धरने वाले होने पर भी करुणा सिंधु तीर्थकर देव सर्व जीवों का रक्षण करते हैं । तीर्थकर स्वयं ऊँचे से ऊँची अहिंसा का पालन करके फिर जगत को अहिंसा का उपदेश देते हैं ।, 4 मदिरापान के नशे के समान युवानी का नशा युवानी में जो धर्म के संस्कार न हों तो जीवन खेदान- मैदान (नष्ट) वन जाता है । कामेच्छा का प्रभाव युवावस्था में इतना ज्यादा होता है कि उससे मनुष्य सारासार (अच्छे बुरे ) का विवेक भी भूल जाता है । यौवन के उन्मादमें दुष्ट विचारों का प्रभाव ज्यादा होता है। इस हिसाब से ही चौवन अनर्थ का कारण है। जीवन में संयम न हो तो युवानी दीवानी वन जाती है । ऐसी अवस्था में सत्ताधीशपना लक्ष्मीवानपना आदि अग्नि को दीप्त करने जैसे हैं । परंदारा का सेवन करनेवाले को परमाधामी देव नरक में अग्नि ले तपाईं हुई लोहे की पुतलियों से बाथ भिड़ाते हैं । ( आलिंगन कराते हैं ) ।.. 93
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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