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प्रवचनसार कर्णिका जगतमें ईष्र्या की ज्वाला जलती ही होती है। विद्या के क्षेत्रमें कोई अधिक विद्यावंत हो तो दूसरों को ईर्ष्या _ आती है। व्यापार में कोई पैसादार हो. तो उसे देख के कितने ही मनमें जलते ही रहते हैं। राजकारण में कोई ऊंचे होद्दे पर आ जाय तो कितनोंको सहन नहीं होता।
..साधु-संस्था में भी किसी के हाथसे शासनके काम अधिक हो जाये तो कितनों को एसा होता है कि यह तो .
खूवं आगे बढ़ गया। कैसे इस पर छींटा उडाऊं यानी.. . बदनाम करूं । एसी मलिन भावना हुए विना रहेगी ही . .
नहीं। जगत में कोई क्षेत्र एसा नहीं है जहाँ ईया की .. ज्वाला न भभक रही हो। . .
- आज जहाँ-वहाँ दिए गए मानपत्र और दीवालों के ऊपर लगाई हुई कुंकुम पत्रिका को देखोगे तो आज धनसे कीर्ति कितनी सस्ती वनी है। . ....
. पूरी जिन्दगी तक नहीं करने लायक काम, और-पाप .. करके एकत्र किए गए धनके द्वारा एकादु धर्म कार्य में पैसा खर्च करनेमें आवे तो उसे कितने ही. विशेषण- देने में आते हैं ? . यह देख करके तो एसा मालूम होता है कि यह तो 'यशोगान कर करके धर्म कराना है। इससे क्या लाभ ? ...... ऐसे यशोगान से दूर रहके आप सव आत्मसाधना में, तदाकार वनो यही मंगल कामना। ......