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. व्याख्यान-इक्कीसवां
___... अनन्त उपकारी शास्त्रकार परमर्षि फरमाते हैं कि
अरिहंत स्वाभाविक रीतसे हो गए एसा नहीं है किन्तु महा पुरुपार्थ करके हो गए हैं। . : ........ - द्रव्य से जीव अनंता है। क्षेत्र से स्वकाय प्रमाण अथवा समग्न लोकाकाश प्रमाण भी आत्मप्रदेश विकसित हो सकते हैं । ... . .. ... .. . ... .. : .. - आकाशास्तिकाय का स्वभाव जगह देनेका है। जैसे भीतमें एक खीला ठोकने से चला जाता है। क्योंकि वहाँ
आकाश है। जहाँ जहाँ. पोलाण (पोल) होती है वहाँ "आकाश बढ़ता है। .. ...
प्रत्येक वनस्पति के शाकमें एक जीव हो इसलिये स्वाद ओछा देता है और कंदमूल के सागमें अनंता.जीव होनेसे स्वाद अधिक होता है। ........
पुद्गल में आठों प्रकारका स्पर्श होता है। - आत्मा अरूपी हैं और पुद्गल रूपी है। आत्मा और पुद्गलको संयोग अनादिकाल का है। जव ये दोनों भिन्न होंगे तभी आत्मा परमात्मा बनेगा।
... यह देह तो भाडूती (किराये की) है। मकान खाली __ करना ही पड़ेगा। उसी तरह यह देह भी एक दिन खाली
मा बनेगा।
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