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प्रवचनसार कर्णिका.
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. समय पकने पर कर्स राजा तुम्हारे ऊपर वारंट काढके चक्रवर्ती व्याज सहित तुम्हारे पासका वदला मांग लेगा। उसमें किसीकी भलामण अथवा या नहीं चलेगी। पाप करके आज भले खुशी हो जाओ लेकिन रोते रोते ऋण तो चुकाना ही पड़ेगा।
तुम्हारा पापानुवन्धी पुन्य बढ़ गया इसीलिये साधुओं का वर्चस्व तुम्हारे ऊपरले घट गया।
तीर्थंकरों को छन्नस्थ अवस्था में भी संसारी सुखकी । लंगति अच्छी नहीं लगती।
तीर्थक्षरों के गृहस्थ जीवनको भी इन्द्र धन्यवाद देते थे और नमस्कार करते थे।
यह तो तुम्हें मालूम होगा ही कि कितने ही मनुष्य अग्नि को हाथमें रखने पर भी जलते नहीं हैं। इसी तरह . संसार में रहने पर भी संसारी जीव संसार से जलते नहीं हैं।
जीवको पुन्यानुवन्धी पुन्य पाप करने ले अटकाता. है (रोकता है) और पापानुवन्धी पुन्य पापको ज्यादा कराता है।
जब तीर्थंकर वर्षीदान देते हैं तब उस समयके जीवों को ऐसा लगता है कि पैसाकी कोई कीमत नहीं है ।
तीर्थंकरों के दानका पैसा जिसके हाथ में जाता है उसको पैसा का राग नष्ट हो जाता है। इस दान का पैसा भवीजीवों के हाथमें ही जाता है।
दान देनेसे लक्ष्मी कभी भी कम नहीं होती है। जैसे हजारों पक्षी सरोवर का पानी पीते हैं लेकिन फिर भी सरोवर का पानी कम नहीं होता है। .