________________
६८०
प्रवचनसार-कणिका
-
जब उसमें किसी प्रकार की शंका हो तव महाविदेह .. क्षेत्रमें विराजमान सीमंधर स्वामीले मनले पूछते हैं और भगवान भी उनके मन को शंका का समाधान करते हैं। ये देवः निर्मल अवधिज्ञान से केवली. भगवान के मन के परिणाम जान सकते हैं।
पुष्करवंर के अडधे भाग में मनुष्य वसते हैं। वाकी के आधे पुष्करवर में मनुष्य नहीं हैं। ढाई द्वीप के बाहर साधु भगवन्त नहीं होते हैं।
युगलियों के मातापिता रहें वहां तक भाईवहन को . संवन्ध। और मातापिता मृत्यु को प्राप्त करें। उसके बाद . पतिपत्नी का संवन्ध हो जाता है। युगलीक मर के देवलोक .. में ही जाते हैं।
गर्भ से (मातापिता के संयोग से) उत्पन्न होने वालों . को गर्भज कहते हैं।
मनुष्य के ३०३ भेद है। उसमें कर्मभूमि के क्षेत्र पन्द्रह हैं । इस भूमि में शस्त्र, व्यापार और रेवती के कमी द्वारा ही जीवन की आजीविका चलती होने से उसे कर्मभूमि कहते हैं।
वाकी की तीस अकर्मभूमि और छप्पन अन्तद्वीप इन भूमियों में युगलिया वसते हैं।
वहां आजीविका के लिये व्यापार खेती वगैरह कुछ : भी नहीं करना पड़ता है। कल्पवृक्षों से ही आजीविका चलती है।
इस तरह पन्द्रह कर्मभूमि के मनुष्य, तीस अकर्मभूमि * ममुष्य और छप्पन अन्तद्वीप के मनुष्य कुल १०१ क्षेत्र के मनुष्य हुये। १०१, गर्भजपर्याप्ता १०१. गर्भज अपाता