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व्याख्यान: उन्नीसवाँ
१६९. सेवा मुझे दो एसी प्रार्थना तुम नित्य करते हो? लेकिन हृदय में एली भावना आवे तभी सच्ची प्रार्थना कही जा सकती है। .
. . . . . जिस दिन शरीर विगड़ा हो उस दिन खूब भूख लगी हो फिर भी खाना नहीं। लेकिन पानी अधिक पीना । 'जिस से अन्दर का मैल पलर कर के (मीज कर के)
साफ हो जाय । - नव लाख नवकार का जाप विधि पूर्वक करने से
दुगति का द्वार बंद होता है। एक लाख नवकार मन्त्र का जाप करने से तीर्थकर नाम कर्म बांधता है।
मिथ्या द्रष्टि का परिचय और प्रशंसा करने से लमकित मलिन होता है। ... वृद्ध चार प्रकार के है :-(१) संयम वृद्ध (२) तपवृद्ध' (३) श्रुत वृद्ध (8) आयु वृद्ध । चारित्र में बड़ा हो वह चारित्र वृद्ध । तपमें आगे हो वह तप वृद्ध.। शास्त्रों का जानकार हो यह श्रुत वृद्ध और उनसे बड़ा हो वह आयु वृद्ध कहलाता है।
श्रावक को सात धोतियां रखने का विधान है लेकिन साधुको एक चोल पट्टा रखना है। इस चोल पट्टासे सव क्रिया होती है। - गृहस्थ के घर वहुत पड़ा हो लेकिन उसको इच्छा
हो वही दे फिर भी साधु मांगके नहीं ले सकता है। - दश वैकालिक में कहा है कि “वहुं परघरे अथ्थी, इच्छा दीज्ज परो न वा।"
जो वस्तु एक वक्त भोगी जासके उसे भोग कहते हैं और वारंवार भोगी जासके उसे. उपभोग कहते हैं ।