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प्रवचनसार कर्णिका
राग तीन प्रकारका है । :
(१) काम राग (२) स्नेह राग (३) द्रष्टि राग । इन तीनों प्रकार के राग दूर करने के लिये धर्म साधना है । इन तीनों में से द्रष्टि राग को निकालना महा कठिन है ।
काल, स्वभाव, भवितव्यता पूर्वकृत और पुरुषार्थ इन पांच कारण को माने उसका नाम समकिती ।
ठाणांग सूत्र में लिखा है कि माँ-बाप के उपकार का वदला चुकाने पर भी नहीं चुकाया जा सकता है ।
चारित्र रूपी जो कमल है उसे क्रीडा करने के लिये वावडी के समान एसे साधु भगवन्तों को नमस्कार है ।
संसार की लटपट में नहीं गिरे उस का नाम साधु । कल्याण प्रवृत्ति में हमेशा मस्त रहे उसका नाम साधु | समता, मोक्ष की अभिलाषा, देव गुरु की भक्ति दया आदि गुण समकिती आत्मा में होते हैं ।
रात के समय नींद उड़ जाय तो भाव श्रावक मनोरथ करे कि इस संसार के सभी संयोगों से मैं मुक्त कव होऊँ ? जीर्ण शीर्ण बस्त्र का पहनने वाला कव वनूं ?
माधुकरी भिक्षा को ग्रहण करने वाला कब बनूं ? एसी उत्तम भावना माने की है ।
जैसे भ्रमर फूल के ऊपर बैठ के फूल का रस चूसता है फिर भी फूल को हैरानगति नहीं होती है । इसी प्रकार गृहस्थ के घर से भिक्षा लेने पर भी गृहस्थ को हैरान गति न हो इस तरह से ही साधु को भिक्षा ग्रहण करनी चाहिये । . इसे माधुकरी भिक्षा कहते हैं ।
हे भगवन् । भव भव में आप के चरण कमल की