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________________ १६८ प्रवचनसार कर्णिका राग तीन प्रकारका है । : (१) काम राग (२) स्नेह राग (३) द्रष्टि राग । इन तीनों प्रकार के राग दूर करने के लिये धर्म साधना है । इन तीनों में से द्रष्टि राग को निकालना महा कठिन है । काल, स्वभाव, भवितव्यता पूर्वकृत और पुरुषार्थ इन पांच कारण को माने उसका नाम समकिती । ठाणांग सूत्र में लिखा है कि माँ-बाप के उपकार का वदला चुकाने पर भी नहीं चुकाया जा सकता है । चारित्र रूपी जो कमल है उसे क्रीडा करने के लिये वावडी के समान एसे साधु भगवन्तों को नमस्कार है । संसार की लटपट में नहीं गिरे उस का नाम साधु । कल्याण प्रवृत्ति में हमेशा मस्त रहे उसका नाम साधु | समता, मोक्ष की अभिलाषा, देव गुरु की भक्ति दया आदि गुण समकिती आत्मा में होते हैं । रात के समय नींद उड़ जाय तो भाव श्रावक मनोरथ करे कि इस संसार के सभी संयोगों से मैं मुक्त कव होऊँ ? जीर्ण शीर्ण बस्त्र का पहनने वाला कव वनूं ? माधुकरी भिक्षा को ग्रहण करने वाला कब बनूं ? एसी उत्तम भावना माने की है । जैसे भ्रमर फूल के ऊपर बैठ के फूल का रस चूसता है फिर भी फूल को हैरानगति नहीं होती है । इसी प्रकार गृहस्थ के घर से भिक्षा लेने पर भी गृहस्थ को हैरान गति न हो इस तरह से ही साधु को भिक्षा ग्रहण करनी चाहिये । . इसे माधुकरी भिक्षा कहते हैं । हे भगवन् । भव भव में आप के चरण कमल की
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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