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________________ - - व्याख्यान-उन्नीसवाँ १६७ सम्यग्दर्शन, सम्यगज्ञान और सम्यक्चारित्र ये मोक्ष जानेका राजमार्ग है। - पर्व दो प्रकारके हैं :-(१) लौकिक (२) लोकोत्तर । संसारी जीव पर्व के दिनों में खाने पीने में मस्त रहता है। धर्मी मनुष्य पर्वके दिन धर्मध्यान की आराधनामें तदाकार बनते हैं। ... ज्ञानीयोंने लक्ष्मी को वेश्या जैसी कहा है । चजाके समान चंचल है, अस्थिर है। जैसे वेश्याको अपने ग्राहक के ऊपर हदय का प्रेम नहीं होता किन्तु लक्ष्मी के ऊपर __उपमिति प्रपंच कथामें लिखा है कि मोक्षके अर्थीको मोक्ष दे और संसार के अर्थीको संसार दे उसका नाम धर्म है। श्री जिनेश्वर भगवंत के धर्मकी श्रद्धा के ऊपर ले भ्रष्ट करने के लिए टुंगिका नगरी के श्रावकों के ऊपर देवोने खूब प्रयत्न किए लेकिन ये श्रावक श्रद्धाले भ्रष्ट नहीं हुए। - स्फटिक के जैले निर्मल मनवाले वे श्रावक धन्यवाद के 'पात्र हैं। ... .. योगशास्त्र में बताया हुआ मैत्रीभाव का वर्णन सुनने जैसा है। वह यह है कि जगतमें कोई भी जीव पाप.नहीं करो। कोई दुःखी न हो और जगत के सव जीव संसारसे मुक्त वने। . __ मनमें कुछ, वचनमें कुछ और प्रवृत्ति में कुछ अन्य प्रवृत्ति करे उसका नाम शेठ । अपने घरमें जो मोह घर करके बैठा है, उसे दूर करने के लिये धर्म है। धर्मी श्रावक खुद तिरे और कुटुम्ब के सभीको तारने का प्रयत्न करे। ..
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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