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प्रवचनसार कणिका ..
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तयण
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राग
तिर्यंच भी देश विरतिधर हो सकता है। उसकी तीन क्रियायें होती हैं आरंभ-समारंभ, परिग्रह और माया।
पांच इन्द्रियों के तेईस विपयों को भोगने का राग होना कामराग है। देवों को कामराग की अनुकूलता विशेष होती है। घरके सगे सम्बन्धियों के ऊपर जो राग होता है उसे स्नेहराग कहते हैं। निर्गुणी को भी गुणी मानना ये द्रष्टि राग है। कामराग और स्नेहराग .. छोड़ना सरल है किन्तु द्रष्टि राग छोड़ना कठिन है।
अमुक वस्तु विना नहीं चले इसका नाम है व्यसन । किसीको भी पापकी सलाह नहीं देना । बनसके तो धर्म. की सलाह देना । न बने तो मौन रहना । यही. जैन शासन का उपदेश है।
यह उपदेश हृदयमें उतारके कल्याण साधो।