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व्याख्यान-अठारहवाँ
परम उपकारी शास्त्रकार महर्षि फरमाते हैं कि आज्ञामें धर्म है। श्री जिनेश्वर देव की आज्ञा के अनुसार एक पोरिसी का तप करे और आज्ञारहित मास क्षमण करे। इन दोनों में से आज्ञापूर्वक पोरसी के तपका फल वढ़ जाता है।
मृत्यु की तैयारी हो उस समय भी साधुपना लिया जा सकता है और हो सके तो वारह व्रत भी लिये जा सकते हैं।
वीतराग के शासन को प्राप्त हुआ आत्मा मृत्यु को सहोत्सव मानता है। किये हुए धर्म की कसौटी अन्त समय होती है। ___अठारह देश के मालिक कुमारपाल महाराजा को शत्रुओंने जहर खिला दिया। कायामें विप फैल गया । जहर उतारने की जड़ी बूट्टी मंगाई परंतु शत्रुओंने वह भी ले ली थी इसलिये नहीं मिल सकी।
.. मन्त्री एकत्रित हुह । राज्यभवन के मुख्य संचालक हाजिर हुए । सबकी आँखोंमें से अश्रु बहने लगे।
. राजवैद्य भी गमगीन चेहरे से बैठे थे। सबके दिलमें एक ही मावना थी कि कुमारपाल महाराजा वच जाये तो ठीक । लेकिन भावि के आगे किसी का भी चलता नहीं