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प्रवचनसार कर्णिका
है । महाराजा मनमें समझ गये कि अव बचने की कोई: बाशा नहीं है । उस समय सभीको आश्चर्य उत्पन्न करे एसी मधुर भाषायें महाराजा कुमारपाल बोले :
हे सज्जनो ! तुम क्यों उदास होते हो ? प्रसन्न हो जाओ । चिन्ता करने की कुछ भी जरूरत नहीं है । अठारह दूषण रहित परमात्मा मिले । कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य जैसे गुरु मिले और वीतराग प्रभुका दयामय धर्म मिला । जीवनमें करने योग्य धर्मकी आराधना भी की है इसलिये अव मृत्यु भले आवे चिन्ता करने जैसा कुछ भी नहीं है । अच्छे कृत्यों की अनुमोदना और दुष्कृत्यों की निन्दा करता हूँ । एसे सुन्दर वचन सुनके सब मुग्ध हो गए और मनमें विचार करने लगे कि धन्य है कुमारपाल महाराजा को ।
नगरी में समाचार वायुवेग की तरह फैल गए । राज्य भवन के बाहर लोग जमा हो गये। चारों तरफ से एक ही आवाज आने लगी कि कहाँ गया दुश्मन ? जिसने महाराजा कुमारपाल को जहर दिया । उसे पकड़ के हाजिर करो ।
अपने राजा के ऊपर प्रजाका कितना प्रेम है ? जो राजा प्रजावच्छल और सत्यनिष्ठ हो उसके ऊपर ही प्रजा का प्रेम प्रवर्तता है ।
राजभवन का विशाल पटांगण मानव समूह खचाखच भर गया। आशा-निराशाके झूलेमें सब झूल रहे थे । किसीको वोलने की हिंमत नहीं थी । इतने में तो महाराजा के मुखमें से एक अरेराटी निकल गई । सबके दिल धड़क उठे । इतने में तो दूसरी अरेराटी ! शरीर में
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