________________
प्रवचनसार कणिका
-
-
महाराजा वर्षा ऋतु में नदी तट ऊपर आये हुये राजभवन में महाराजा श्रेणिक और रानी चेलना सो रहे थे। पासमें खल खल करती नदी बह रही थी। मध्यरात्रि का लमय था । उस समय एक मनुष्य लंगोट लगाके नदीमें गिरके काष्ठ (लकड़ियां) निकाल रहा था।
यह दृश्य देखकर चेलना विचार करने लगी कि अहा ! श्रेणिक महाराज का राज्य होने पर भी एले दुखी । मनुष्य भी राज्य में हैं । जो स्थ जीविका के निर्वाह के . लिये रातको नींद भी नहीं लेते । और मध्यरात्री में वर्षा ... की सख्त ठंडी में काट लेने के लिये नदीमें कूदते हैं।
प्रजा दुखी हो और राजा आनन्द में मग्न रहे वह योग्य नहीं है। एसी विचार तरंगों में महासती चेलनादेवी जागृतावस्था में सो गई।
प्रातःकाले महाराजा श्रेणिक जागृत हुये ! प्रातःकर्म ले निवृत्त होकर राजसभा में जाने के पहले महाराजा श्रेणिक चेलनादेवी के हाथसे दुग्धपान करने आये । दुग्धपान कराते समय चेलनादेवी बोली कि महाराज! आपके जैसे न्यायी और प्रजावत्सल राजा के राज्यमें प्रजाको कितना दुख सहन करना पड़ता है। एसा कहके रातको देखी हकीकत राजाको कह सुनाई। . .
राजाने कहा एसा दुखी सेरे राज्यमें कौन है । उसकी मैं जांच करूंगा। एसा कहके महाराजा राज्य सामें चले गये। . राज्य सभाका कार्य पूरा करके महाराजाने पूछा कि हे मन्त्रीश्वर । गई. काल रातमें नदीसें गिरके काष्ठ