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________________ १५४ प्रवचनसार कर्णिका है । महाराजा मनमें समझ गये कि अव बचने की कोई: बाशा नहीं है । उस समय सभीको आश्चर्य उत्पन्न करे एसी मधुर भाषायें महाराजा कुमारपाल बोले : हे सज्जनो ! तुम क्यों उदास होते हो ? प्रसन्न हो जाओ । चिन्ता करने की कुछ भी जरूरत नहीं है । अठारह दूषण रहित परमात्मा मिले । कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य जैसे गुरु मिले और वीतराग प्रभुका दयामय धर्म मिला । जीवनमें करने योग्य धर्मकी आराधना भी की है इसलिये अव मृत्यु भले आवे चिन्ता करने जैसा कुछ भी नहीं है । अच्छे कृत्यों की अनुमोदना और दुष्कृत्यों की निन्दा करता हूँ । एसे सुन्दर वचन सुनके सब मुग्ध हो गए और मनमें विचार करने लगे कि धन्य है कुमारपाल महाराजा को । नगरी में समाचार वायुवेग की तरह फैल गए । राज्य भवन के बाहर लोग जमा हो गये। चारों तरफ से एक ही आवाज आने लगी कि कहाँ गया दुश्मन ? जिसने महाराजा कुमारपाल को जहर दिया । उसे पकड़ के हाजिर करो । अपने राजा के ऊपर प्रजाका कितना प्रेम है ? जो राजा प्रजावच्छल और सत्यनिष्ठ हो उसके ऊपर ही प्रजा का प्रेम प्रवर्तता है । राजभवन का विशाल पटांगण मानव समूह खचाखच भर गया। आशा-निराशाके झूलेमें सब झूल रहे थे । किसीको वोलने की हिंमत नहीं थी । इतने में तो महाराजा के मुखमें से एक अरेराटी निकल गई । सबके दिल धड़क उठे । इतने में तो दूसरी अरेराटी ! शरीर में "
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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