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प्रवचनसार कर्णिका (सैन्योंका नाश) होने लगी। और बजकर्ण राजा के पक्ष में अल्प खुवारी (विनाश-सैन्योंका नाश) होने लगी। जो दरवाजा एकाध महीना तक नहीं खुलें और युद्ध एसे का एसा ही चले तो खुदकी सैना खत्म हो जाय । पूर्व दरवाजाके ऊपर रहनेवाले सैनिकों के साथ नीचे रह करके. लड़ाई करना कहां तक चलाया जा सकता था। - इधर वनवास में निकले हुये राम, लक्ष्मण और सीताजी वहां के दक्षिण दिशाके उपवनमें आये। किसी राहगीर से युद्ध की हकीकत उनको मालूम होती है। रामचन्द्रजीने विचार किया कि यह तो साधर्मिक ऊपर. आपत्ति आई है। आपत्तिमें पड़े हुये साधर्मिक को मदद करना ये अपनी खास फरज है। रामचन्द्रजी लक्ष्मणजी ले कहते हैं कि जल्दी तैयार होजाओ। अभी के अभी नगरी में जाकर के राजा वज्रकर्ण से मिलना है। तीनों चले । दक्षिण के दरवाजे से थोडी तलाश कराके नगरी में प्रवेश करके सीधे राजमहल के पास जाकर के खड़े हुये वहां से एक पत्र नौकर के द्वारा राजाके पास भेजा । पत्र वांचकर के खुद महाराजा दौड़कर आये । पैरों में गिरे । और आशीर्वाद मांगने लगे । यह दृश्य देखकर सैनिक विचार करने लगे। . वज्रकर्ण की विनती को स्वीकार करके राम, लक्ष्मण और सीताजी राजभवन में पधारे । क्षेम कुशलता के. समाचार पूछने के वाद वर्तमान में हो रही लड़ाई की बातें हुई रातको दश वजे गुप्त मंत्राणा हुई। सेनापति हाजिर हुये । महामन्त्री, नगर रक्षक आदि हाजिर हुये। वज्रर्ण राजा कहने लगे कि अपना प्रवल पुण्योदय है. कि अपने आंगन में आज रघुकुल दीपक श्री रामचन्द्रजी