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प्रवचनलार कर्णिका 'तुम हमारे घरमें घुसे हो अगर अब मैं तुमको नहीं निकाल दूं तो मेरा नाम शूरवीर नहीं ।
भगवान आदिनाथके ९९ पुत्र भगवान से पूछते हैं कि हमारे महाराजा भरतके साथ लड़ाई करना कि आज्ञा . मानना ? भगवानने कहा कि तुम दोनों बातें छोड़कर प्रवज्या अंगीकार करो। सब दीक्षा ले लेते हैं और आत्माराधना में तदाकार बन जाते हैं।
साधुपना अंगीकार किये विना गृहास्थाश्रम में भी वैराग्य भावसे रह करके आत्म साधन किया जा सकता है। एसा कहनेवालों को यह समझ नहीं है कि साधुपने में वीसबीसा दया पलाती हैं लेकिन कैसा भी गृहस्थी हो सवारसा दया से अधिक दयाका पालक नहीं बन सकता है। कारण कि मुनि महाराज त्रस और स्थावर इस तरह दोनों प्रकार के जीवोंकी दया पालते हैं । लेकिन श्रावक सिर्फ त्रस जीवों की दया पाल सकता है इसलिये रहा दशवसा । त्रस जीवों की दयामें भी निर्दोष को ही वचा सकते हैं, इसलिये रहे पांच वसा । निर्दोष जीव भी आरंभ-समारंभ ले मारे जाते हैं, इसलिये ढाई वसा। . अपने स्वजन-सम्बन्धी अगर पशु वगैरह के रोगकी दवाई करना पड़े उसमें भी जीव मारे जाते हैं इसलिये रहे सवा वसो। इस तरह कैसा श्रावक भी सवा वसो दया पाल सकता है । इसलिये विश्वके जीव सर्वविरति रूप साधु-पने को प्राप्त करके आत्मः श्रेय साधे यही शुभेच्छा।
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