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प्रवचनसार कणिका -
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भोजन के चार भांगा (श्रेणी) हैं। (१) दिनमें वनाना, दिनमें खाना (२) दिनमें बनाना और रातको खाना !३) . रातको बनाना और दिनको खाना :(४) रातको बनाना और रातको खाना । इनमें से पहला भांगा भक्ष्य हैं और शेष तीन सांगा अभक्ष्य हैं।
सिद्ध के जीव लोकाकाश के अन्तमें स्थित रहते हैं। अलोक में नहीं जा सकते। क्योंकि अलोक में केवल आकाशास्तिकाय है। धर्मास्तिकायादि शेष द्रव्य नहीं हैं। इसलिये धर्मास्तिकाय विना लोकाकाश से आगे गति नहीं हो सकती है।
जो आदमी जिस गतिमें जानेवाला हो उस गति के योग्य लेश्या उसके मृत्यु के समय होती है। ब्रह्मदत्त चक्रकी नरकमें जानेवाले थे इसलिये मरते समय वे अपनी पट्टरानी कुरूमति का स्मरण करते थे और स्मरण करते करते नरकगति में गए । यह है अन्त समय की मतिका प्रभाव । जैसो गति वैसी मति होती है और जैसी मति वैसी गति ।
जराकुमार के हाथ कृष्ण की मृत्यु होना है ऐसा भविष्य कथन सुनकर के जराकुमार जंगल में चला गया जिससे स्वयं मृत्यु का निमित्त नहीं बने । परन्तु क्या भवितव्यता मिथ्या हो सकती है ? द्वारिका नगरीका ध्वंस होने के बाद कृष्ण और बलभद्र परिभ्रमण · करते करते जहां जराकुमार रहता था वहां गये । तृषातुर वने कृष्णजी को बलभद्रजी नजदीक के सरोवर से जल लेने गये । इतने में दूरसे श्रीकृष्णजी के पैरमें रहते पद्म के तेजको कोई जानवर मान करके श्रीकृष्ण के आगमन से अनजान ऐसे