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.. व्याख्यान-सोलहवाँ
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क्या समाचार हैं ? कुशल तो है ?. एसे मिठाश अरे वचन सुनकर लौदागर प्रसन्न हो गये। और कहने लगे कि महाराज, आप की प्रशंसा सुन कर के ही यहां तक आये हैं। आपके अन्तःपुर के लिये कई नूतन वस्त्र लाये हैं। क्या लाये हो ? महाराजा ने पूछा। रत्न कंवल लाये हैं। रत्न कंवल ? हां महाराज । कितनी लाये हो ? महाराज,
सोलह लाया हूं। कितनी कोमत ? सहाराज, एक की कीमत .. मक लाख लोनामहोर है। पेटी (बोक्स) खोल के रत्न कंवल दिखाये । श्रेणिक सहाराजा देखकर के प्रसन्न हो गये। लेकिन विचार करने लगे कि एली. महा सूल्यवान रत्न कंवल लेकर के क्या करना है। इतनी. सुवर्ण मुद्रायें गरीवको दें तो उलका उद्धार हो जाय। निर्णय कर लिया कि वस । नहीं चाहिये। व्यापारियों को उद्देश्य करके बोले महानुभाव, एसी अति मूल्यवान कंबल लेने की मेरी इच्छा . नहीं है। यह शब्द सुनकर के व्यापारी निराश बन गया। मनसें निर्णच कर लिया कि इतने देशोंमें फिरने पर श्री मेरी कला का सम्मान नहीं हुआ। वह सचमुच में सेरे पुन्य की कचाश है। महाराजा को नमस्कार कर के व्यापारी चला गया । श्रेणिक महाराजाने वहां से उठ कर अपनी प्रिय पट्टरानी चेल्लणा देवी के पास जाकर रत्न कंवल की सव वात की। वात सुनकर के चेल्लणा देवीने कहा कि कितनी भी महंगी हो फिर भी सुझे चाहिये ।
श्रेणिक महाराजाने महारानी को खूब समझाया लेकिन ये . तो स्त्री हठ । नहीं प्रियतम । मुझे तो चाहिये चाहियेः
चाहिये । इस लिये.ला के दो । ठीक । तलाश करा के: खवर दूंगा । एसा कह के महाराजा वहां से निकल गये। . .: इस तरफ व्यापारी, निराशा... बदन से पीछे फिरने,