________________
-
--
-
-
marwanamasana-
manasa
n sarma
प्रवचनसार कणिका... क्या करना? क्या हो? किनी नरम निन्दा नहीं होनी . चाहिये। उत्नग और अपवाद के जाननवाले आचार्य । महाराज ने कल्पना कर ली। जिस कुरीले राजा का रहन हुआ उसी हरी ले में मेगी काया का त्याग कर। सुबह लोग कह से कि दुष्ट पसा विनय रत्न की राजा को और आचार्य महाराज को मार के चला गया । बस । फिर . जैन धर्म की निन्दा नहीं होगी। . आचार्य महाराज ने सन से लथपथ ली हाथमें ली. . . नवकार मंत्र का स्मरण किया। चार शरण स्वीकार लिय। फिर आचार्य महाराज ने स्वहाथ में रदी हरी दापने गला . पर फेर दी। घड और नसता विभिन्न हो गये। आचार्य महाराज का अमर आत्मा अमरलोक में चला गया । शालन का चमकता सितारा सदा के लिये अन्त हो गया। एक ही रात में राजा और भाचार्य महाराज विदा हो गये।
प्रातःकाल की झालर रणक उठी (बजने लगो)। संगल चाल हुए। रूमके बाहर खड़ा रक्षक राह देखने लगा। परंतु रूममें से कोई बाहर नहीं आया। पसा क्यों? रूमके पास जाकर के रक्षक देखने लगा। अंदर से कोई भी आवाज नहीं आया । स्या? अभी तक सब निद्राधीन होंगे। थोड़ी देर राह देखी । इतनेमें तो आचार्य महाराज के शिष्य गुरुमहाराज को लेने आ गये। महाराजा को लेने के लिये पट्टरानी वगैरह स्वजन आये। द्वार रक्षकके पास से सब बात सुनकर के सवको आश्चर्य हुआ। द्वार खोलने का प्रयत्न किया परंतु निष्फलता । अन्दर से वन्द दरवाजा कैसे खुले ? यथायोग्य कारवाई करके दरवाजा खोला गया। रूममें द्रष्टि पडते ही देखने वालों के हृदय