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प्रवचनसार कर्णिका तीर्थकर परमात्मा के जीव राज्य त्रुद्धि के भंडारों को ठुकरा करके चल निकलते हैं।
निगोदादि के शरीर जैसे शरीर चर्मचक्षु से नहीं देखे जा सकते । उनको देखने के लिये तो केवलज्ञान
और केवल दर्शन ही चाहिये । इसलिये केवलज्ञान और केवल दर्शन की प्राप्ति का प्रयत्न करो।
जो जीव निगोद में ले एक वक्त बाहर निकलता है । उसे व्यवहार राशिवाला कहते हैं । अनादिकाल से निगोद में से जो निकला ही नहीं है। वह अव्यवहार राशिवाला कहलाता है । अपना नंवर व्यवहार राशि में है। सम्पूर्ण दिनमें आत्मा कितनी बार याद आती है ? तुम तो आत्मा के ही पुजारी ह जो आत्मा का पुजारी हो वही आत्मा को याद करता है।
तिजोरी में धन रखते हुये जितना आनन्द आत्मा को. आता है उसकी अपेक्षा अनेक गुना आनन्द तिजोरी में । से निकाल के धर्ममार्ग में उपयोग लाने के टाइम आवे तभी हृदय में धर्म वसा कहा जा सकता है। - कोई चन्दा (टीप) आवे उस समय दूसरोंने बड़ी रकम दी है एसा जान करके अपनेको भी एक सौ रुपया देना ही पडेंगे । पसा मान करके एक सौ देना पडेंगे की गिनती से पचास देनेकी वात से शुरू करे। सामनेवाला आदमी पचास के बदले साठ देनेका कहे तव साठ मंडा करके मनमें चालीस बचने के आनन्द का अनुभव करने वालेको समझना चाहिये कि तेरे चालीस बचे नहीं किंतु साठ भी गंवा दिये हैं। क्योंकि साठ खर्चने की अनुमोदना मनमें नहीं है। .. . ... ... . .. ...