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व्याख्यान-सोलहवाँ उसमें हे आत्मा; लेशमात्र भी: शंका नहीं करना । तेरी बुद्धि अल्प है, परमात्मा के ज्ञानके सामने लेशमात्र भी. तेरी बुद्धि काम नहीं कर सकती है। ये स्वाभाविक है। यह तो जैन शासन है। जैन शासन के प्रणेता श्री तीर्थकर परमात्मा हैं। केवलज्ञान प्राप्त होते ही वे परमात्मा चतुर्विध संघकी स्थापना करते हैं और त्रिपदी के द्वारा विश्वके पदार्थों का स्वरूप दिखाते हैं। उन विपदि को सुनकर गणधर उलकी सूत्र रचना करते हैं। जो जैनागम
तरीके पहचानी जाती है। महा पुन्यशाली आत्माये ही . श्री तीर्थकर देवों की वाणी का समूह रूप जैनागमों का
श्रवण कर सकते हैं। . . . . . . . . :: ..... मानव जीवन मोक्षमें जाने के लिये जंकशन है। जिस प्रकार जंकशन से अनेक लाईनें निकलती हैं। हरेक स्थल गाड़ी जाने के लिये .. फाँटें तो जंकशन ले.ही पड़ते हैं। उसी प्रकार मानवजीवन में से अनेक लाईने निकलती हैं। दंडक सूत्र में कहा है कि-लब्बत्थं जंति मणुआ।" .
तुम्हारी इच्छा किस. लाइन में जाने की है ? .... :मोक्ष में जाना हो तो अपने हाथ की बात है। क्योंकि मोक्षमार्ग की आराधला इस मानव भवके सिवाय होनेवाली ही नहीं है। देव के शरीर की अपेक्षा मानव का शरीर दुर्गन्ध की पेटी के समान है। फिर भी मोक्षकी साधना को तो अनुत्तर वासी देवों को भी मनुष्य भव लेना पड़ता है। लेकिन साथ साथ इतना जरूर समझ लेना कि मानव भवकी महत्ता भौतिक अनुकूलता की प्राप्ति में नहीं है। यह दुर्लमता तो संयम साधना की अनुकूलता को अनुलक्ष करके ही मानी गई है। इसीलिये