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व्याख्यान-सोलहवाँ
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व्यवहारिक जीव कहलाते हैं। और अनन्त काल से किसी दिन वाहर नहीं निकले हुये अव्यवहारिया कहलाते हैं।
निगोद जो चौदह राज लोक में ठूस ठूस कर के भरी हुई है उस निगोद के असंख्यात गोला हैं । एकेक गोले में उन निगोद के जीवों के असंख्याता शरीर हैं। और एकेक शरीर में अनंता जीव हैं । जो केवली भगवन्त की शान दृष्टि के सिवाय दूसरे किसी ले भी देखे जा सकें एसे नहीं हैं। ..
निगोद में अनन्ता जीवों को रहने का एक शरीर होने से बहुत ही सकरे स्थानमें तीन वेदना भोगनी पड़ती हैं। उस निगोद के अन्दर कर्म के वश हुआ तीक्ष्ण दुखों को सहन करता, एक श्वासोच्छवास जितने अल्प काल में सत्रह भव अधिक भव करने पड़ते हैं । और इनके द्वारा जन्म मरण की वहुत वेदना सहन करते करते “ अनंता पुदगल परावर्तन तक जीव रहा है।
असंख्यात वर्ष का एक पल्योपम । दश कोटा कोटि पल्मोपमक । एक सागरोपम, वीस कोडा कोडी सागरोपम की उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी मिल के एक कालचक्र अनंताकाल चक्र का एक पुद्गल परावर्तन एसे, अनन्ता पुदगल परावर्तन काल तक उस निगोद में रहने वाले जीव ऊपर सुजव अति अल्प समय का एक भव इस तरह वारंवार जन्म मरण करने के द्वारा भव करते करते काल व्यतीत कर अनंतानंत दुख भोगे । . · , इस प्रकार सूक्ष्म निगोद में अनंतकाल निकाल कर के अकाम निर्जरा के द्वारा यह जीव यादर निगोद में उत्पन्न हुआ। वहां आलू ; गाजर, मूला (भूरा) कांदा (प्याज)